शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

ब्रह्मचर्यं नमस्कृत्य चासाध्यं साधयाम्यहम्...


दोस्तों, असाध्य (मुश्किल) तो बहुत कुछ होता है। जीवन में समय समय पर असाध्य चीज़ें सामने आती हैं। और हम लोग उनको साधना चाहते भी हैं। कुछ लोग हिम्मत से साधते हैं, तो कुछ लोग मजबूरी में साधते हैं। जीवन सभी का बीतता है। लेकिन हम सभी जानते हैं कि मुसीबतों को हिम्मत से साधने में जो मजा है, वो टँग-लटककर साधने (की कोशिश करने) में नहीं है। इसीलिए हमारे देश के एक ऊर्जावान् युवा ने यह उद्‌घोषणा की थी कि मैं ब्रह्मचर्य को नमस्कार करके असाध्य को भी साधता हूँ (ब्रह्मचर्यं नमस्कृत्य चासाध्यं साधयाम्यहम्...)। यह एक प्रसिद्ध श्लोक है। इसने मुझे बार बार ब्रह्मचर्य की ओर आकर्षित किया है। उतनी ही तीव्रता से, उतनी ही उत्कण्ठा से जितनी से कोई.... क्या कहूँ। "कामिहिं नारि पियारि जिमि, लोभिहिं प्रिय जिमि दाम ..."। अब तो समझ ही गये?
जब कोई असाध्य को सधवाने का दावा कर दे, यानी असंभव को संभव बनाने की शक्ति मिलने की बात कर दे, तो सच्चा उत्साही इससे बड़ा आकर्षण कहाँ पायेगा? मेरा भी यही हाल है।
ये तो आधे श्लोक की झलक है, पूरा यह है-
ब्रह्मचर्यं नमस्कृत्य चासाध्यं साधयाम्यहम्।
सर्वलक्षणहीनत्वं  हन्यते  ब्रह्मचर्यया ॥
अर्थ: ब्रह्मचर्य को नमस्कार करके ही मैं असाध्य को साधता हूँ। ब्रह्मचर्य से सारी लक्षणहीनताएँ (यानी व्याधियाँ, विकार तथा कमियाँ) नष्ट हो जाती हैँ।

ऐसे महान् अभ्यास को कम कैसे आँका जा सकता है। यह तो दो-तीन दिन में ही अपनी महिमा चेहरे पे प्रकट करने लगता है, तो फिर इसकी महत्ता जानने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक के पास जाने की क्या जरूरत है? इस संयम के जाते ही तो तत्काल मन खुद को दुत्कारने लगता है, तो फिर अब्रह्मचर्य के नुकसान जानने के लिए किसी के ऍक्सपेरिमेंट खंगालने की क्या जरूरत है?
दरअसल हम सभी ब्रह्मचर्य में ही जीना चाहते हैं, इसका स्वयंप्रकाशित प्रमाण यह है कि कोई भी व्यक्ति ब्रह्मचर्य टूटने की अवस्था को पसन्द नहीं करता और ब्रह्मचर्य की अवस्था में अच्छा महसूस कर रहा होता है। लेकिन हम अपने हारमोनों से हारे रहते हैं और उस अच्छी अवस्था को बचाकर नहीं रख पाते जिसमें हममें उत्तम उत्साह था। और ठीकरा ब्रह्मचर्य की कठिनाइयों के सिर पर फोड़ते हैं। सच तो यह है कि ब्रह्मचर्य उतना कठिन नहीं है, जितना कि पर्याप्त ब्रह्मचर्य-सूचना के अभाव में बन जाता है। यह सूचना हम युवावर्ग के लोगों में सतत और सात्त्विक रूप में पहुँचती रहे, यही इस ब्लॉग का लक्ष्य है। मित्रों, आगे जल्दी ही कुछ और सामग्री लिखने का प्रयास रहेगा...।

9 टिप्‍पणियां:

  1. jo bhi ho aap per aap jo ye blog likh rahe ho ye ek acha karya kar rahe ho
    asha karta hoon ki aap oor jaankaari blog per post karenge oor sahi marg darshan karte rahenge
    ek sujhaav oor hai ki aap ise hindi mai hi jari rakhen.

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    1. धन्यवाद राहुल जी। अवश्य ही, इसे हिन्दी में ही जारी रखा जायेगा।

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  2. आपने बहुत ही अच्छा और सही लिखा है ...........मैं खुद इंटरनेट पर पिछले कई समय से ब्रह्मचर्य की अच्छी और सही जानकारी पाने कि कोशिश कर रहा था परन्तु मुझे आपके जितना अच्छा ,विस्तारपूर्ण और हकीकत से जुड़ने वाला लेख नहीं मिला ..........बहुत जरूरी है हमारी युवा पीढ़ी को इसकी जानकारी होना .........इसके लिए बहुत-२ धन्यवाद

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    1. इन लेखों को पढ़ने के लिए आपका भी बहुत बहुत धन्यवाद। (कार्यव्यस्तता के कारण देरी से उत्तर के लिए क्षमा चाहता हूँ।)

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  3. One immediate result of observing brahmacharya-vRata is: Activation of the creative instinct. If a person has a poetic imagination, brahmacharyam will easily enhance the ability of PRakhyA (= the PRatibhA power to "see" new poetic material in the inner mind, and also the ability of upAkhyA (= the PRatibhA power to describe the "vision" in attractive language so that sahR^daya-s will enjoy the KavitA). This is a clearly proven experience from my life. NamastE!

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  4. सभी को मेरा प्रणाम।
    मेरा नाम मनीष दुबे हैं जहां तक मेरा अनुभव है कि ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए संकल्प दृढ़ संकल्प अगर अपने मन में कर लिया जाए तो ब्रह्मचर्य का पालन किया जा सकता है मैं ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए पवित्र जल को साक्षी मानकर संकल्प लेता हूं रोज नहाने के पश्चात। सर्वप्रथम मैं अपने हाथ में जल लेकर संकल्प लेता हूं जो कि इस प्रकार है मैं आप को साक्षी मानकर यह प्राण लेता हूं कि मैं जब तक अविवाहित रहूंगा तब तक अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करूंगा और आप इसमें मेरी सहायता करें। और उसके बाद उस जल को अपने ऊपर डाल लेता हूं।

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