सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

ब्रह्मचर्य पर आधुनिक "गुरु" उदासीन क्यों रहते हैं ?

 हम ये देखते आए हैं कि सन् 1995 से लेकर आज तक दशक दर दशक सामयिक गुरुओं (आध्यात्मिक विचारकों) में ब्रह्मचर्य को लेकर धीरे धीरे उदासीनता आई है और वे इस पर बल कम देने लगे हैं । क्या यह अनिवार्यतः गलत दिशा में प्रवाह है या इसके कुछ कारण हैं ?

हमारा मानना है कि इसके कारण निम्नानुसार हो सकते हैं,

1. आधुनिक गुरु जानते हैं कि आधुनिक युग के युवाओं को अधिक संख्या में आकर्षित करना है तो सीधे ब्रह्मचर्य पर भाषण देने से कुछ न होने का । अतः वे अपने "होमपेज" पर कुछ अधिक आकर्षक बातें रखना चाहते हैं ।

2. ब्रह्मचर्य पर कार्य करने वाले साधु अक्सर एकान्त में ही रहते हैं और अपने गिनती के शिष्यों को सिखाते व उपदेश करते हैं अतः स्वाभाविक है कि उनकी गिनती हम नहीं कर पाते हैं ।

3. ब्रह्मचर्य एक ऐसा कॉन्सैप्ट है जिसपर बोलने की अपेक्षा अनुभव करना व व्यवहार करना अधिक आवश्यक लगता है ऐसे में साधुजन इस पर कम बोलते हैं ।

4. लिखित में इन्टरनेट पर  अधिक सामग्री के प्रसार ने युवाओं की ब्रह्मचर्य संबंधी पिपासा को शान्त करना प्रारम्भ कर दिया जिससे प्रवचनकारों को इसकी आवश्यकता उतनी न लगी ।

5. ब्रह्मचर्य पर चलने का सर्वश्रेष्ठ तरीका कई विद्वज्जन यह मानते हैं कि अधिक आध्यात्मिक हो जाएँ बाकी सब स्वतः हो जाएगा । परिणामतः इस पर बोलने की अपेक्षा भक्ति व अध्यात्म पर बोलना अधिक प्रभावी समझते हैं ।


इसके अतिरिक्त भी अनेक कारण खोजे जा सकते हैं । क्या आपका भी ऐसा अनुभव है ? यदि हाँ तो क्या कारण मानते हैं आप ?