बुधवार, 16 मई 2012

(युवाओं को चाहिये कि) समझने की प्रक्रिया को एक्सलरेट करें...

ब्रह्मचर्य से या अपने प्रबलतम कामावेग को संयत रखने से कोई फायदा होता है यह बात समझने के लोगों के अपने अपने लेवल होते हैं। ये लेवल व्यक्ति के मानसिक-उच्चता के स्तर पर भी निर्भर करते हैं और उम्र पर भी। ये दोनों कारक स्वतन्त्र रूप से कार्य कर सकते हैं।
उम्र की बात की जाये तो ब्रह्मचर्य से फायदा होता  है यह बात सबसे नयी उम्र के लोग हो सकता है सबसे कठिनता से समझें, उसके बाद थोड़े बड़े युवाओं में यह प्रतिशत बढ़ जाता है, क्योंकि अपनी गलतियों और अनुभव से लोग काफी शिक्षा लेते हैं (इसमें कुछ गलत भी नहीं है)। तीस वर्ष के आसपास शायद लोग सबसे ज्यादा आसानी से इस बात को समझ सकते हैं। आगे तो यह समझ बढ़ती ही है। और इस बात से हम अनभिज्ञ नहीं हैं कि सबसे बुज़ुर्ग लोग सबसे ज्यादा कन्विन्स्ड (convinced) होते हैं कि संयम रखने वाले युवक ही सबसे तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।
इस सारी उम्रवार समझ का कारण यह है कि व्यक्ति जीवन जीते-जीते खुद की घटनाओं के द्वारा और साथ ही लोगों के संपर्क में आते हुए अधिकाधिक मामलों ( cases ) के संपर्क में आते-आते कई सारी चीजें प्रत्यक्ष सिद्ध कर लेता है, जिनपर कि केवल कहने मात्र से या पढ़ने मात्र से यकीन नहीं होता।

लेकिन हम यहाँ कहना चाहते हैं कि जितनी जल्दी इस बात को समझा जाये मनुष्य उतने प्रबल व्यक्तित्व का धनी बन सकता है। कारण सीधा है। मान लीजिये किसी को तीस वर्ष की उम्र में यह बात समझ में आती है, यदि मनुष्य की सामान्य आयु 70 वर्ष मानी जाये तब उसके पास जीवन के चालीस वर्ष ही हैं, जिनमें से भी विद्यार्थी जीवन शायद निकल चुका है। लेकिन जो व्यक्ति बाईस वर्ष की उम्र में इस तथ्य से कन्विन्स्ड् या सन्देहरहित (convinced ) हो गया है उसके पास आठ वर्ष अधिक हैं जो कि युवावस्था के स्वर्णिम वर्ष हैं जिनमें कि वह अपनी प्रबल ऊर्जा को पढ़ाई या खेल (या दोनों) में लगाकर अपना व्यक्तित्व हमेशा-हमेशा के लिए प्रखर बना सकता है। (इसका अर्थ यह न लें कि तीस वर्ष की उम्र में जागे तो जागे नहीं... जनाब यहाँ तो जागना ही बहुत बड़ी बात है)। इसका मतलब यह है कि युवाओं को अपनी समझने की इस प्रक्रिया को तेज करना चाहिये,... एक्सलरेट (accelerate) करना चाहिये।

यह कैसे संभव है? क्या मैं मेरी समझ को नियन्त्रित रख सकता हूँ। क्या जो चीज मुझे वैचारिक-रूप से आज की उम्र में  (हार्मोनों के कारण) अपाच्य है, उसे मैं आज ही सुपाच्य बना सकता हूँ? क्या मैं अपनी समझ को आदेश देकर कह सकता हूँ कि तू जल्दी विकसित हो जा ! ?
जी हाँ, यह संभव है। आप अच्छी तरह जानते हैं कि समझ नाम की चीज हमारे अंदर बहुत कुछ आसपास के वातावरण से विकसित होती है। जैसे आप अपने चारों ओर देखिये। महानगरों के चौराहों पर आठ-नौ वर्ष के बच्चे वाहन रुकते ही हाथ फैलाकर पैसे माँगने लग जाते हैं। आप याद कीजिये कि जब आप आठ नौ वर्ष के थे आपको कोई ऐसा करने को कहता तो आप शरमा जाते। क्योंकि आपके आसपास के वातावरण यानी घर परिवार में भीख माँगना बहुत निम्न कार्य माना जाता था अतः आपकी समझ भी यही बनी। यदि ये ही अभागे बच्चे किसी ठीक-ठाक परिवार में पले बढ़े होते (भले ही जन्मे कहीं और होते) तो इन्हें भी इस कार्य में शर्म महसूस होती।
इसी तरह हर मामले में आसपास का वैचारिक वातावरण असर डालता है। यदि मैं सारा दिन ऐसी पुस्तकें पढ़ता रहूँ जिनमें नायक नायिका शारीरिक सुखभोगों के लिए सारे संवाद बोलते और सारा जीवन जीते हों तो मुझे कौनसे विचार आयेंगे? यदि मैं दिन में एक फिल्म भी ऐसी देखता हूँ जिसमें के समाज को कोई शक नहीं है कि शारीरिक इच्छा की पूर्ति ही कहानी का सुखान्त है, तो मेरे मन में कौनसे आकर्षण आयेंगे? कहने का मतलब यह नहीं कि समाज से अपने को काट डालो। लेकिन समझ रखो कि किस चीज का असर क्या है। अगर यह समझ आपमें है तो आप कुछ तो आगे बढ़ चुके होंगे। आगे का काम आसान हो जायेगा।

इन चीजों से बचने के साथ ही मेरे विचार से इसके लिए आपको ब्रह्मचर्य से संबंधित पुस्तकें बार बार पढ़ते रहना चाहिये। इसका असर अपने आप होता है। ऐसी पुस्तकें या लेख बार-बार पढ़ने से कुछ दिनों में ऐसा लगने लगता है कि ब्रह्मचर्य ही सबसे ज्यादा प्रशंसित गुण है (मैं यहाँ लगने लगता है इसलिए कह रहा हूँ कि आज के समाज में प्रशंसा तो इसकी कम हो गयी है, हालाँकि लाभ कम तो होने से रहे)। और मन उसी चीज को पाने का टार्गेट करता है जो चीज समाज में सबसे प्रशंसित हो (जैसे ऑर्कुट प्रशंसित हो तो ऑर्कुट, फेसबुक प्रशंसित हो तो फेसबुक), यह मन की स्वाभाविक वृत्ति है, आपको कुछ करना नहीं पड़ेगा। आपको सिर्फ ऐसी किताबें बार बार पढ़नी होंगी, अर्थ समझते हुए। एक बार आप ऐसे स्वाभाविक संयम के "चक्कर" में फँस गये तो आपको पढ़ाई और व्यक्तित्व में, कार्य की गुणवत्ता में, इतने लाभ होंगे कि यह आपका केवल "अंधविश्वास" नहीं रह जायेगा बल्कि अनुभव बन जायेगा। यानी आप इन तथ्यों से convinced जायेंगे। कुल मिलाकर, यह एक कार्य आपको कम उम्र में ही convinced कर देगा। आज नहीं तो कल हर मनुष्य की यह समझ विकसित होनी ही है, तो फिर क्यों न उसे जल्दी विकसित करके उसके प्रबलतम लाभ उठाये जायें ?


और यदि आप इस मैथड से कन्विन्स्ड् न हों तो मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि कम से कम इस एक काम को तो बिना कन्विन्स्ड् हुए शुरू कर लीजिये। आगे तो कन्विन्स्ड् होना ही है।