सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

ब्रह्मचर्य पर आधुनिक "गुरु" उदासीन क्यों रहते हैं ?

 हम ये देखते आए हैं कि सन् 1995 से लेकर आज तक दशक दर दशक सामयिक गुरुओं (आध्यात्मिक विचारकों) में ब्रह्मचर्य को लेकर धीरे धीरे उदासीनता आई है और वे इस पर बल कम देने लगे हैं । क्या यह अनिवार्यतः गलत दिशा में प्रवाह है या इसके कुछ कारण हैं ?

हमारा मानना है कि इसके कारण निम्नानुसार हो सकते हैं,

1. आधुनिक गुरु जानते हैं कि आधुनिक युग के युवाओं को अधिक संख्या में आकर्षित करना है तो सीधे ब्रह्मचर्य पर भाषण देने से कुछ न होने का । अतः वे अपने "होमपेज" पर कुछ अधिक आकर्षक बातें रखना चाहते हैं ।

2. ब्रह्मचर्य पर कार्य करने वाले साधु अक्सर एकान्त में ही रहते हैं और अपने गिनती के शिष्यों को सिखाते व उपदेश करते हैं अतः स्वाभाविक है कि उनकी गिनती हम नहीं कर पाते हैं ।

3. ब्रह्मचर्य एक ऐसा कॉन्सैप्ट है जिसपर बोलने की अपेक्षा अनुभव करना व व्यवहार करना अधिक आवश्यक लगता है ऐसे में साधुजन इस पर कम बोलते हैं ।

4. लिखित में इन्टरनेट पर  अधिक सामग्री के प्रसार ने युवाओं की ब्रह्मचर्य संबंधी पिपासा को शान्त करना प्रारम्भ कर दिया जिससे प्रवचनकारों को इसकी आवश्यकता उतनी न लगी ।

5. ब्रह्मचर्य पर चलने का सर्वश्रेष्ठ तरीका कई विद्वज्जन यह मानते हैं कि अधिक आध्यात्मिक हो जाएँ बाकी सब स्वतः हो जाएगा । परिणामतः इस पर बोलने की अपेक्षा भक्ति व अध्यात्म पर बोलना अधिक प्रभावी समझते हैं ।


इसके अतिरिक्त भी अनेक कारण खोजे जा सकते हैं । क्या आपका भी ऐसा अनुभव है ? यदि हाँ तो क्या कारण मानते हैं आप ? 

रविवार, 9 दिसंबर 2012

ब्रह्मचर्य पर स्वामी विवेकानन्द के विचार

प्रस्तुत लेख में "द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानन्द" इत्यादि स्थानों से, ब्रह्मचर्य विषय पर स्वामी विवेकानन्द के विचार दिये जा रहे  हैं। ये एक ब्रह्मचर्य-साधक के लिए बहुत ही शक्तिप्रद विचार हैं। ऊपर का अंग्रेजी मूल उसके ठीक नीचे हिन्दी में अनुवादित है। इसमें और अधिक विचार भी जोड़े जाते रहेंगे। धन्यवाद।

Swamiji: You don't know! That power may come to all. That power comes to him who 
observes unbroken Brahmacharya for a period of twelve years, with the sole object of realising God I have practiced that kind of Brahmacharya myself, and so a screen has been removed, as it were, from my brain. For that reason, I need not any more think over or prepare myself for any lectures on such a subtle subject as philosophy. Suppose I have to lecture tomorrow; all that I shall speak about will pass tonight before my eyes like so many pictures; and the next day I put into words during my lecture all those things that I saw. So you will understand now that it is not any power which is exclusively my own. Whoever will practice unbroken Brahmacharya for twelve years will surely have it. If you do so, you too will get it. Our Shâstras do not say that only such and such a person will get it and not others!

स्वामीजी- क्या तुम नहीं जानते? यह शक्ति सभी में आ सकती है। यह शक्ति उसमें आती है जो बारह वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य का पालन करता है, ईश्वर को पाने के एकमात्र लक्ष्य के साथ, मैं स्वयं उस तरह के ब्रह्मचर्य का पालन कर चुका हूँ, और उससे, मानो कि एक पर्दा सा मेरे मस्तिष्क से हट गया है। इसलिए मुझे अब दर्शन जैसे सूक्ष्म विषय पर भाषण देने के लिए भी ज्यादा तैयारी  करना या सोचना नहीं पड़ता। मान लो कि मुझे कल व्याख्यान देना है, जो भी मुझे बोलना होगा वह मेरी आँखों के सामने कई चित्रों की तरह आज रात को गुजर जाता है। और अगले दिन मैं वही सब, जो मैंने देखा था, शब्दों में व्यक्त कर देता हूँ। तो अब तुम समझोगे, कि यह कोई ऐसी शक्ति नहीं है जो कि सिर्फ मेरी हो। जो कोई भी बारह वर्ष के लिए अखंड ब्रह्मचर्य का पालन करेगा, वह निश्चित रूप से इसे पायेगा। अगर तुम ऐसा करोगे तो तुम भी इसे पाओगे। हमारे शास्त्र यह नहीं कहते कि केवल ऐसा-ऐसा व्यक्ति ही इसे पायेगा, और दूसरा नहीं।



If the performance of Yajnas is the corner-stone of the work-portion of the Vedas, as surely is Brahmacharya the foundation of the knowledge-portion.

यदि यज्ञों का करना वेदों के कर्मकाण्ड भाग की टेक (आधार) है तो उतना ही निश्चित रूप से ब्रह्मचर्य, ज्ञानकाण्ड भाग की टेक है।

The object of my speaking of these things is to impress upon you the fact that the life of each nation has a moral purpose of its own, and the manners and customs of a nation must be judged from the standpoint of that purpose. The Westerners should be seen through their eyes; to see them through our eyes, and for them to see us with theirs — both these are mistakes. The purpose of our life is quite the opposite of theirs. The Sanskrit name for a student, Brahmachârin, is synonymous with the Sanskrit word Kâmajit. (One who has full control over his passions.) Our goal of life is Moksha; how can that be ever attained without Brahmacharya or absolute continence? Hence it is imposed upon our boys and youth as an indispensable condition during their studentship. 

मेरा यह सब कहने का उद्देश्य यह है कि आपको यह समझा सकूँ कि हर राष्ट्र के जीवन का अपना एक नैतिक लक्ष्य होता है, और उस राष्ट्र के शिष्टाचार और रिवाज़ उसी उद्देश्य की दृष्टि से समझे जाने चाहिये। पाश्चात्यों को उनकी आँखों से देखा जाना चाहिये, उन्हें हमारी दृष्टि से देखा जाना और हमें उनकी दृष्टि से देखा जाना - दोनों गलतियाँ हैं। हमारे जीवन का उद्देश्य उनसे ठीक उल्टा है। छात्र के लिए संस्कृत का शब्द ब्रह्मचारी है जो कि कामजित् शब्द का पर्याय है (वह जिसका उसके कामवेग पर पूरा नियन्त्रण है)। जीवन का हमारा लक्ष्य मोक्ष है; वह ब्रह्मचर्य या पूर्ण संयम के बिना कैसे पाया जा सकता है? इसीलिए यह हमारे बालकों और युवाओं पर छात्रजीवन के दौरान एक अनिवार्य शर्त के रूप में रखा जाता है।    
                                                                                      - 'द कम्प्लीट वर्क्स ऑफ स्वामी विवेकानंद' से।


. A few days ago, a new set of the Encyclopaedia Britannica had been bought for the Math. Seeing the new shining volumes, the disciple said to Swamiji, "It is almost impossible to read all these books in a single lifetime." He was unaware that Swamiji had already finished ten volumes and had begun the eleventh.

Swamiji: What do you say? Ask me anything you like from these ten volumes, and I will answer you all.

The disciple asked in wonder, "Have you read all these books?"
Swamiji: Why should I ask you to question me otherwise?
Being examined, Swamiji not only reproduced the sense, but at places the very language of the difficult topics selected from each volume. The disciple, astonished, put aside the books, saying, "This is not within human power!"
Swamiji: Do you see, simply by the observance of strict Brahmacharya (continence) all learning can be mastered in a very short time...

कुछ दिन पहले मठ के लिए एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटेनिका का नया सैट खरीद के लाया गया था, नये चमकते खण्ड देखकर शिष्य ने कहा, "इन सारी किताबों को एक जीवन में पढ़ना लगभग असंभव है।", उसे इस बात का भान नहीं था कि स्वामीजी पहले ही दस खण्ड समाप्त कर चुके थे और ग्यारहवाँ शुरू कर चुके थे। 
स्वामीजी: क्या कहते हो? इन दस खण्डों में से जो चाहो पूछ लो, और मैं तुम्हें सबका उत्तर दूँगा।
शिष्य ने अचरज से पूछा-  "क्या आपने ये सारी किताबें पढ़ ली हैं?"
स्वामीजी: तो फिर मैं तुमसे प्रश्न पूछने को और किसलिए कहता?
परीक्षा किये जाने पर स्वामीजी ने न सिर्फ भाव को यथावत् बताया, बल्कि हर खण्ड से चुने गये कठिन विषयों की मूल भाषा तक कई स्थानों पर दुहरा दी। शिष्य स्तब्ध हो गया, उसने किताबें एक तरफ रख दीं, यह कहते हुए कि, "यह मनुष्य की शक्ति के अन्दर नहीं है!"
स्वामीजी: क्या तुम देखते हो, सिर्फ ब्रह्मचर्य के दृढता से पालन से, सारी शिक्षा केवल थोड़े से समय में अधिकारपूर्वक सीखी जा सकती है...


गुरुवार, 11 अक्तूबर 2012

ब्रह्मचर्य के लिए इन्टरनेट, खतरा या मददगार?

जो लोग ब्रह्मचर्य को ही अपना लक्ष्य मानते हैं, वे अच्छी तरह से जानते हैं कि इन्टरनेट इसके लिए कितना बड़ा खतरा पेश करता है। हमारा उद्देश्य इस लेख के जरिये यह जानना है कि इसे किस तरह इस तथ्य के बावज़ूद अपने विकास में मददगार के रूप में उपयोग किया जा सकता है।

इन्टरनेट एक अन्तर्राष्ट्रीय तथा साझा चलने वाला नेटवर्क है, जो प्राइवेट और सरकारों के कंप्यूटरों और सर्वरों के जुड़ने से बना है।
जाहिर है इसपर किसी एक सरकार का प्रभुत्व संभव नहीं है और है भी नहीं। और इसपर देश-विदेश की कई सारी संस्कृतियों और समाजों, मान्यताओं और विचारधाराओं के पाठ्य स्वच्छन्द विचरण करते मिल जाएँगे। ऐसे में यह तो संभव नहीं की हम इसकी वेबसाइटों पर श्लीलता के, शिष्टता के या संस्कृति के कुछ मानक जबरन लागू कर सकें।
ऐसे में जो युवजन इन्टरनेट पर अपना ज्ञान बढ़ाने या स्वस्थ मनोरंजन के लिए कदम रखते हैं कुछ वेबसाइटों द्वारा उन पर भी बार-बार असभ्य चित्रों और शब्दावली का चारा फेंका जाता है, और जाहिर है कई लोग फँस भी जाते हैं। मुझे यहाँ जो फँसना ही चाहते हैं उनके फँसने पर रोना नहीं रोना है। न ही मुझे यहाँ यह कहना है कि यह भारत का दुर्भाग्य है, आदि आदि। (दुर्भाग्य-सौभाग्य तो समय-चक्र के खेल हैं। और जो फँसना ही चाहते हैं, उन्हें उसका परिणाम भी इसी जन्म में कम या ज्यादा देखना ही होता है।) हम यहाँ उन पुरुषसिंहों और वीरों की बात कर रहे हैं जो अपनी जीवनशक्ति का संरक्षण कर उसे महानतम कार्यों में लगाना चाहते हैं और जिनकी आनन्द की परिकल्पना छोटी नहीं बल्कि बहुत विशाल है।
इन्टरनेट पर कार्य करना ऐसे युवकों के लिए कभी-कभी चुनौती बन जाता है, खासकर तब जबकि अकेले या अलग बैठकर कार्य करना पड़े। ऐसा क्या किया जाये कि इन्टरनेट के खतरों से सफलतापूर्वक निपटा जा सके?

पहली बात तो यह है कि अगर इन्टरनेट पर कार्य करना ही पड़ रहा है तो इसके अच्छे पक्षों का चिन्तन ज्यादा करें और बुरे पक्षों का जितना हो सके कम से कम करें (हालाँकि खतरों के प्रति सावधानियाँ कम कदापि न करें)। अच्छे पक्ष जैसे- ज्ञानवर्धक वेबसाइटें, चरित्र-व्यक्तित्व निखारने वाले ब्लॉग, विभिन्न प्रकार के ट्यूटोरियल - यकीनन इन्टरनेट पर इन सबकी भी भरमार है, और कोई भी व्यक्ति चाहे कितना भी पाश्चात्य क्यों न हो अन्ततः दिमाग के बल पर ही जीता है, रोजी रोटी कमाता है। इसीलिए इन्टरनेट पर इन ज्ञानवर्धक सामग्रियों के दिन सदा ही अच्छे रहेंगे।
इन्टरनेट का उपयोग किसी की मौजूदगी में ही करें तो अच्छा है। लेकिन यदि अकेले में करना पड़े तो ये तरीके अपना सकते हैं-
अपने कंप्यूटर के डेस्कटॉप पर किसी महापुरुष का (जिसकी महानता में आपका दृढ़ विश्वास है), या अपने परिवार के प्रियजनों का चित्र लगाएँ (इस दूसरी विधि से आपको अपनी जिम्मेदारी का अहसास रहेगा)। या फिर ऐसा चित्र अपने सामने रखें। साथ ही मन में यह विचार भी दृढ़ कर लें कि "यदि इस बैठक के बाद मैं सुरक्षित बाहर निकला तो शरीर का बहुत बड़ा फ़ायदा होगा, जबकि क्षणिक सुख में उलझने से केवल उतने समय के बाद पछतावा ही पछतावा होगा, और कसूरवार केवल समय का एक छोटा सा पल होगा, जिसे मैं फिर विपरीत दिशा में नहीं चला सकता हूँ, (बेचारा लाचार मैं)। लेकिन वही मैं, ठीक अभी इस समय का राजा हूँ , और इसे अपनी मनपसंद दिशा में ले जाने की पूरी कमान मेरे पास है। तो क्यों न लंबे समय के सुख के लिए छोटे सुख से लड़ा जाये उसे हरा दिया जाये।" (आपके शब्द कुछ और हो सकते हैं, जैसा आपको असरदार लगे)।

अपने ब्राउसर के कुछ टैब में ब्रह्मचर्य युक्त विचारों की वेबसाइटें खोलकर रखें और बीच-बीच में उन्हें पढ़ते रहें। यह बहुत प्रभावी तरीका है। विचारों की काट विचारों से ही होती है, और सद्विचारों से बड़ा बल आजतक दुनियाँ में देखा नहीं गया है।

यहाँ तक कि ब्रह्मचर्य युक्त विचारों वाली वेबसाइटों की खोज भी कर सकते हैं (लेकिन सावधानी से)। यकीन मानिए संगति में बड़ा बल  होता है। जब हम यह बात पहले ही जानते हैं कि स्वाभाविक रूप से अधिकांश मनुष्य भोगों में ही सार देखते हैं, तो फिर हमें यह भी मानना होगा कि ब्रह्मचर्यव्रत धारने वालों के लिए दिनभर का कार्यव्यापार वास्तव में उसे हल्की संगति ही उपलब्ध कराता है, और इसके बावजूद कुछ लोग ब्रह्मचर्य में सफल होते हैं तो यह उनकी महानता ही है।

कुल मिलाकर कथ्य यह है कि ब्रह्मचर्य के पक्षधर लेख आप पढ़ते रहें तो आपका मन आपको धोखा नहीं देगा, क्योंकि तब आपके मन को पता चल जायेगा कि यह केवल आपका नहीं दुनियाँ के कई-कई लोगों का अनुभव है कि ब्रह्मचर्य से महान आनन्द मिलता है- यह एक प्रभावी बल होगा जो आपको ब्रह्मचर्य पर दृढ़ रखेगा।

यदि आप घर या कार्यस्थल से इन्टरनेट ऐक्सेस करते हैं, तो एक बड़ी परेशानी यह हो सकती है कि भले ही एक कार्य-संबंधी या ठीक-ठाक श्लील वेबसाइट खुली हो, उसपर के विज्ञापन भौंडे चित्र या एनीमेशन दिखा रहे हो सकते हैं। ऐसे में कुछ तकनीकी औजारों (टूल्स) की सहायता से उनसे निपटा जा सकता है।



वेबसाइट में से इमेजेस (चित्र) छिपाने वाले टूल्स (औजार)- 


1. फायरफॉक्स पर- https://addons.mozilla.org/en-us/firefox/addon/hideimages/
इस टूल का उपयोग करने पर किसी भी चित्र (इमेज) पर राइट-क्लिक करने से hide image तथा unhide image के विकल्प दिखेंगे। अपनी जरूरत के अनुसार व्यर्थ चित्रों को हाइड करके विजेता सम्राट् की तरह मनपसंद सामग्री पढ़ें।
इस टूल को कभी अक्षम (disable) करना पड़े तो add-ons manager में जाकर टूल के नाम के सामने disable पर क्लिक करें।

2. क्रोम पर, यह केवल विज्ञापन हटाने का दावा करता है, वैसे ज्यादातर व्यर्थ चित्र विज्ञापनों में ही होते हैं, अतः कुछ हद तक प्रभावी है - https://chrome.google.com/webstore/detail/adblock/gighmmpiobklfepjocnamgkkbiglidom
यदि टूल को अक्षम करना हो तो मैनू में सेटिंग्स पर क्लिक करें, फिर जो पेज खुले उसमें एक्सटेन्शन्स पर क्लिक करें तथा enabled को uncheck करें।

अपने ब्राउसर के अनुसार, लिंक पर क्लिक करके पेज पर पहुँच सकते हैं। और फिर Add to Firefox या Add to Chrome पर क्लिक करके आप अपने ब्राउसर को रीस्टार्ट (close करके फिर से open) कीजिये। यह टूल काम करने लगेगा।

प्रत्याख्यान (disclaimer)- उपर्युक्त टूल इस लेख के लेखक ने डेवलप नहीं किये हैं, अतः इनके संबंध में किसी प्रकार की जिम्मेदारी लेखक पर नहीं है। कृपया साइबर-सुरक्षा की सावधानियों का ध्यान रखें।


यदि साइबर कैफ़े पर जा सर्फ़िंग करने जा रहे हैं तो प्रयास करें कि उस कंप्यूटर पर बैठें जो दूसरों की निगाह में हो, इससे सर्फ़िंग नियन्त्रित दिशा में रहेगी।

और भी कई सारे उपाय हैं और विवेकवान व्यक्ति खुद भी थोड़ा सोचकर उपाय ढूँढ सकते हैं- जैसे अकेले घर में सर्फ़िंग करने पर मुख्यद्वार खुला रखकर सर्फ़िंग करने से नियंत्रण बना रहेगा (लेकिन घर की सुरक्षा का भी ध्यान रखें :) ).

इस तरह हम देखते हैं कि इस इन्टरनेट को जो ब्रह्मचर्य के लिए खतरा पेश करता है, सही तरीके से उपयोग किया जाये तो सही विचारों के संचय में मददगार बनाया जा सकता है। हमारे सामने चुनौतियाँ तो आती ही रहेंगी, हमारा कार्य है बुद्धि और प्रज्ञा  का उपयोग करके उनसे बाहर निकलना। अगर हम खुद काम-वासना से पीछे हटेंगे तो वह नष्ट हो ही जायेगी, उसमें इतना दम नहीं कि उसके बाद भी हमें हाँक सके, वास्तव में काम-वासना को दम आप ही दे रहे हैं। इसलिए दम फिर भी आपमें ही ज्यादा है। कहा भी है-

संकल्पात् जायते कामः, सेव्यमानो विवर्धते।
यदा प्राज्ञो निवर्तते तदा सद्यः प्रणश्यति।।

अर्थ- संकल्प (यानी हमारे खुद के सोचने) से ही काम-वासना उत्पन्न होती है, तथा हमारे द्वारा सेवन किये जाने से ही बढ़ती है। जब प्राज्ञ व्यक्ति इससे पीछे हट जाता है तो तुरंत ही यह काम-वासना नष्ट हो जाती है।

शुभकामनाएँ...!

बुधवार, 16 मई 2012

(युवाओं को चाहिये कि) समझने की प्रक्रिया को एक्सलरेट करें...

ब्रह्मचर्य से या अपने प्रबलतम कामावेग को संयत रखने से कोई फायदा होता है यह बात समझने के लोगों के अपने अपने लेवल होते हैं। ये लेवल व्यक्ति के मानसिक-उच्चता के स्तर पर भी निर्भर करते हैं और उम्र पर भी। ये दोनों कारक स्वतन्त्र रूप से कार्य कर सकते हैं।
उम्र की बात की जाये तो ब्रह्मचर्य से फायदा होता  है यह बात सबसे नयी उम्र के लोग हो सकता है सबसे कठिनता से समझें, उसके बाद थोड़े बड़े युवाओं में यह प्रतिशत बढ़ जाता है, क्योंकि अपनी गलतियों और अनुभव से लोग काफी शिक्षा लेते हैं (इसमें कुछ गलत भी नहीं है)। तीस वर्ष के आसपास शायद लोग सबसे ज्यादा आसानी से इस बात को समझ सकते हैं। आगे तो यह समझ बढ़ती ही है। और इस बात से हम अनभिज्ञ नहीं हैं कि सबसे बुज़ुर्ग लोग सबसे ज्यादा कन्विन्स्ड (convinced) होते हैं कि संयम रखने वाले युवक ही सबसे तेजी से आगे बढ़ सकते हैं।
इस सारी उम्रवार समझ का कारण यह है कि व्यक्ति जीवन जीते-जीते खुद की घटनाओं के द्वारा और साथ ही लोगों के संपर्क में आते हुए अधिकाधिक मामलों ( cases ) के संपर्क में आते-आते कई सारी चीजें प्रत्यक्ष सिद्ध कर लेता है, जिनपर कि केवल कहने मात्र से या पढ़ने मात्र से यकीन नहीं होता।

लेकिन हम यहाँ कहना चाहते हैं कि जितनी जल्दी इस बात को समझा जाये मनुष्य उतने प्रबल व्यक्तित्व का धनी बन सकता है। कारण सीधा है। मान लीजिये किसी को तीस वर्ष की उम्र में यह बात समझ में आती है, यदि मनुष्य की सामान्य आयु 70 वर्ष मानी जाये तब उसके पास जीवन के चालीस वर्ष ही हैं, जिनमें से भी विद्यार्थी जीवन शायद निकल चुका है। लेकिन जो व्यक्ति बाईस वर्ष की उम्र में इस तथ्य से कन्विन्स्ड् या सन्देहरहित (convinced ) हो गया है उसके पास आठ वर्ष अधिक हैं जो कि युवावस्था के स्वर्णिम वर्ष हैं जिनमें कि वह अपनी प्रबल ऊर्जा को पढ़ाई या खेल (या दोनों) में लगाकर अपना व्यक्तित्व हमेशा-हमेशा के लिए प्रखर बना सकता है। (इसका अर्थ यह न लें कि तीस वर्ष की उम्र में जागे तो जागे नहीं... जनाब यहाँ तो जागना ही बहुत बड़ी बात है)। इसका मतलब यह है कि युवाओं को अपनी समझने की इस प्रक्रिया को तेज करना चाहिये,... एक्सलरेट (accelerate) करना चाहिये।

यह कैसे संभव है? क्या मैं मेरी समझ को नियन्त्रित रख सकता हूँ। क्या जो चीज मुझे वैचारिक-रूप से आज की उम्र में  (हार्मोनों के कारण) अपाच्य है, उसे मैं आज ही सुपाच्य बना सकता हूँ? क्या मैं अपनी समझ को आदेश देकर कह सकता हूँ कि तू जल्दी विकसित हो जा ! ?
जी हाँ, यह संभव है। आप अच्छी तरह जानते हैं कि समझ नाम की चीज हमारे अंदर बहुत कुछ आसपास के वातावरण से विकसित होती है। जैसे आप अपने चारों ओर देखिये। महानगरों के चौराहों पर आठ-नौ वर्ष के बच्चे वाहन रुकते ही हाथ फैलाकर पैसे माँगने लग जाते हैं। आप याद कीजिये कि जब आप आठ नौ वर्ष के थे आपको कोई ऐसा करने को कहता तो आप शरमा जाते। क्योंकि आपके आसपास के वातावरण यानी घर परिवार में भीख माँगना बहुत निम्न कार्य माना जाता था अतः आपकी समझ भी यही बनी। यदि ये ही अभागे बच्चे किसी ठीक-ठाक परिवार में पले बढ़े होते (भले ही जन्मे कहीं और होते) तो इन्हें भी इस कार्य में शर्म महसूस होती।
इसी तरह हर मामले में आसपास का वैचारिक वातावरण असर डालता है। यदि मैं सारा दिन ऐसी पुस्तकें पढ़ता रहूँ जिनमें नायक नायिका शारीरिक सुखभोगों के लिए सारे संवाद बोलते और सारा जीवन जीते हों तो मुझे कौनसे विचार आयेंगे? यदि मैं दिन में एक फिल्म भी ऐसी देखता हूँ जिसमें के समाज को कोई शक नहीं है कि शारीरिक इच्छा की पूर्ति ही कहानी का सुखान्त है, तो मेरे मन में कौनसे आकर्षण आयेंगे? कहने का मतलब यह नहीं कि समाज से अपने को काट डालो। लेकिन समझ रखो कि किस चीज का असर क्या है। अगर यह समझ आपमें है तो आप कुछ तो आगे बढ़ चुके होंगे। आगे का काम आसान हो जायेगा।

इन चीजों से बचने के साथ ही मेरे विचार से इसके लिए आपको ब्रह्मचर्य से संबंधित पुस्तकें बार बार पढ़ते रहना चाहिये। इसका असर अपने आप होता है। ऐसी पुस्तकें या लेख बार-बार पढ़ने से कुछ दिनों में ऐसा लगने लगता है कि ब्रह्मचर्य ही सबसे ज्यादा प्रशंसित गुण है (मैं यहाँ लगने लगता है इसलिए कह रहा हूँ कि आज के समाज में प्रशंसा तो इसकी कम हो गयी है, हालाँकि लाभ कम तो होने से रहे)। और मन उसी चीज को पाने का टार्गेट करता है जो चीज समाज में सबसे प्रशंसित हो (जैसे ऑर्कुट प्रशंसित हो तो ऑर्कुट, फेसबुक प्रशंसित हो तो फेसबुक), यह मन की स्वाभाविक वृत्ति है, आपको कुछ करना नहीं पड़ेगा। आपको सिर्फ ऐसी किताबें बार बार पढ़नी होंगी, अर्थ समझते हुए। एक बार आप ऐसे स्वाभाविक संयम के "चक्कर" में फँस गये तो आपको पढ़ाई और व्यक्तित्व में, कार्य की गुणवत्ता में, इतने लाभ होंगे कि यह आपका केवल "अंधविश्वास" नहीं रह जायेगा बल्कि अनुभव बन जायेगा। यानी आप इन तथ्यों से convinced जायेंगे। कुल मिलाकर, यह एक कार्य आपको कम उम्र में ही convinced कर देगा। आज नहीं तो कल हर मनुष्य की यह समझ विकसित होनी ही है, तो फिर क्यों न उसे जल्दी विकसित करके उसके प्रबलतम लाभ उठाये जायें ?


और यदि आप इस मैथड से कन्विन्स्ड् न हों तो मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि कम से कम इस एक काम को तो बिना कन्विन्स्ड् हुए शुरू कर लीजिये। आगे तो कन्विन्स्ड् होना ही है।